Friday 15 August 2014

शहीद दिवस

राष्ट्र धर्म राष्ट्र चेतना
की सुधि किन्हें कब आती है
घर की देहरी पर चुपके से वो
जलते दीपक को आँचल उढ़ाती है
कुछ करते नमन शहीदों को
कुछ घर में ही रह जाते हैं
भूले भटके यदा कदा
वीरों के गीत सुनाते हैं
करते रक्षा देश की जो
देते अपनी कुर्बानी
बहाते लहू जिनके लिए
भूल अपनी जवानी
टूटे सपने बुनते अपने
घुट घुट कर मर जाते हैं
सूनी गोद उजड़ी मांग
रक्षा बंधन कैसे मनाते हैं
होली मनाते दीवाली मनाते
दुनिया का हर पर्व मनाते हो
मनाते जैसा प्रेम दिवस
शहीद दिवस मनाते हो ?
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

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