Friday 15 August 2014

बंटना हमारी नियति है ?

बंटना हमारी नियति है ?
--------------------------
काल का काल मैं बंटना
काल के बंधन में बंधना
अहंकार, गर्व के पोषण में
विश्व के दर्पण में चमकना
धार्मिक उन्माद की आंधी में
देश का सीमाओं में बंटना
बंटना हमारी नियति है ?
कभी जातिवाद कभी मजहब राग
क्षेत्रवाद कभी भाषा विवाद
कभी संख्या बल, के बल पर
सीमाओं में सीमा रेख खींच कर
बंटना हमारी नियति है ?
एक समाज अब अनेक समाज
एक धर्म अब अनेक धर्म
फैला दिया ऐसा भ्रम
भूल गये राष्ट्र धर्म
बंटना हमारी नियति है ?
देश में देश का बंटवारा
समाज में समाज का बंटवारा
परिवार में परिवार का बंटवारा
भाई भाई का बंटवारा
माँ बाप के प्यार का बंटवारा
बंटना हमारी नियति है ?
जब भेद भाव, धर्म, जाति
नफरत की आंधी चलती
मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा
जहाँ हो पूजा, आरती और अजान
अब वहां रक्त धारा बहती
बंटना हमारी नियति है ?
दलित, पिछड़े का झगडा
कभी अगड़ा कभी पिछड़ा
पिछड़े में भी पिछड़ा
क्या अगड़े में पिछड़े नहीं हैं
या पिछड़े में अगड़ा
जानबूझ कर अनजान बने हो
मोहपाश में किसके फंसे हो
आपस में क्यों बंटे हुए हो
बंटना हमारी नियति है ?
कैसा लगता है जब कोई
पिछड़ा, दलित कह बुलाता है
क्या आहत होता नहीं स्वाभिमान
क्या नहीं हम इस धरती के इंसान
बंटना हमारी नियति है ?
हम बंटे हुए थे बंटे रहेंगे
समझते हुए भी नहीं समझेगे
क्या पाया उस बंटने में
क्या पायेंगे इस बंटने में
बंटना हमारी नियति है ?
देखो रक्त बहा जो धरती पर
किस मजहब का किस जाति का
क्या इसकी कोई पहचान है
जब यह नहीं बंटा क्यों फिर हम बंटें
बंटना हमारी नियति है ?
कौन फूला है कौन फला है
घर परिवारों की लड़ाई में
जो मजा है सह्रदयता, समरसता में
उसका आनंद उठाओ
जितना बंटना था बंट चुके
कर्मवीर बन जाओ .
एक ही धरती एक ही अम्बर
न कोई अगड़ा न कोई पिछड़ा
हम सब एक समान
अब न होने देंगे टुकड़े
एक रहेगा पूरा हिदुस्तान
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई
आपस में हैं भाई भाई
मानवता है सबका धर्म
आओ अब सब मिलकर
क्यों न करें अच्छे कर्म.
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

No comments:

Post a Comment