सफर नामा ---- बचपन से पचपन तक
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जीवन पृष्ठ मेरे
हाथों में तेरे
खुली किताब की तरह
कुछ
चिपके पन्ने
कह रहे
दास्तान पढ़ने को
बहुत कठिन होता है अपने को पढ़ना अगर पढ़ भी लिया तों उसे ईमानदारी से सार्वजनिक किया जाना. यद्यपि मैने अपना जीवन एक खुली किताब की तरह जिया है. जिसने जो मुझसे जानना चाहा तों मैने सच सच बयान किया। फिर भी लाख चाहा जाये , किताब को कितनी सुंदरता के साथ कलेवर दिया जाए कहीं न कहीं पन्ने चिपके रह जाते हैं. जिसको पढ़ने के लिए बार बार साहस करना पड़ता है और कभी दिल कहता है कि उन्हें पढ़ा ही न जाए. पर पढ़ने वाले उन पन्नों को खोल ही लेते हैं, कुछ बेदर्दी से खोलते हैं और कुछ उन्हें सलीके से।
देखूँ मेरा बचपन कैसा था
जैसा आज हूँ वैसा था क्या .
हाँ पर शायद नहीं
मैं भी अपवाद नहीं
लौट अतीत के पन्नों में
उन शब्दों को ढूँढता हूँ
जिनसे बने वाक्य
फिर एक सुदर रचना
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जीवन पृष्ठ मेरे
हाथों में तेरे
खुली किताब की तरह
कुछ
चिपके पन्ने
कह रहे
दास्तान पढ़ने को
बहुत कठिन होता है अपने को पढ़ना अगर पढ़ भी लिया तों उसे ईमानदारी से सार्वजनिक किया जाना. यद्यपि मैने अपना जीवन एक खुली किताब की तरह जिया है. जिसने जो मुझसे जानना चाहा तों मैने सच सच बयान किया। फिर भी लाख चाहा जाये , किताब को कितनी सुंदरता के साथ कलेवर दिया जाए कहीं न कहीं पन्ने चिपके रह जाते हैं. जिसको पढ़ने के लिए बार बार साहस करना पड़ता है और कभी दिल कहता है कि उन्हें पढ़ा ही न जाए. पर पढ़ने वाले उन पन्नों को खोल ही लेते हैं, कुछ बेदर्दी से खोलते हैं और कुछ उन्हें सलीके से।
देखूँ मेरा बचपन कैसा था
जैसा आज हूँ वैसा था क्या .
हाँ पर शायद नहीं
मैं भी अपवाद नहीं
लौट अतीत के पन्नों में
उन शब्दों को ढूँढता हूँ
जिनसे बने वाक्य
फिर एक सुदर रचना
उत्तर प्रदेश के जनपद जालौन के ग्राम अनघोरा डाकघर परावल की माटी में खेला जनपद गोंडा का अक्षांश , देशांतर और बीच में जनपद लखनऊ में पल्लवित पुष्पित हुआ।