Friday 15 August 2014

कोटि कोटि नमन

कोटि कोटि नमन
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उन्नत भाल हिमालय का
गोद में बहती गंगा यमुना
सागर पांव पखारे
हर मौसम अपना
लहलहाते खेत जहाँ
धरती उगले सोना
धर्म निरपेक्षता धर्म जहाँ
लोकतंत्र की थाती है
विश्व शांति सन्देश हमारा
सारी दुनिया गुण गाती है
युगों युगों से देश सदा
ज्ञान विज्ञान का केंद्र रहा
भ्रमण पे आने वालों का
मन लुभावन क्षेत्र रहा
जो आया उसे अपना लिया
गया तो भी न बिसराया
शील सनेही भाव कारण
पग पग धोखा खाया
जल्दी चेते देर न की
रक्षा कवच चढ़ाया
हुआ आक्रमण
जब फिर हम पर
दुश्मन मार भगाया
धन्य हैं रणबांकुरे हमारे
धन्य हैं उनकी माता
शौर्य गाथा उनकी गा गा
भारतवासी शीश नवाता
भूल नहीं सकता भारत
उन बलिदानी वीरों को
आभार प्रकट करने को
चिताओं पर लगता मेला
श्रद्धा सुमन अर्पित उनको
“प्रदीप” ये जीवन का खेला
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

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