हम भारतीय हैं
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इस - किस से तौबा करिये
यूं न मुस्कराइए
आड़ ले कानून की
संस्कृति का मखोल न उड़ाइये
सियार बन गीदड से
मत हुआ -हुआ चिल्लाइये
भारत की संतान हैं
करें शर्म शेर बन
जाइए
माना कि गम हैं बहुत
कुर्सी के जाने के
मौका मिला आखिरी
चीखने - चिल्लाने को
बिखेरिये खुशबू फिजां में
खरबूजा न बन जाइए
है बेटी बहू भी आपकी
पुरखों का भी गमो रंज
बदल सकोगे न इतिहास अब
कस लो कितने ही तंज
जन्म भारत में लिया जब
भारतीय बन जाइए
भाषा कोई रंग कोई
पहनावा अलग भले ही हो
ये ईंट मेरी -ये
छींट मेरी
कह न अब बडबडा इये
जाग चुका नव जवान अब
और न उसे बर्गालाइए
राष्ट्र सम्पदा मान
अब
विकास क्रांति को लाइए
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
१२-१२-२०१४
छंट रहा है तम
करो न अब गम
अरुणोदय हो रहा
विश्व गुरु हैं हम
सबको बताइए
बाल बढ़ चले
युवा बढ़ चले
बजी दुन्दुभी
मतवाले चल पड़े
मात्र शक्ति पीछे नही
सादर शीश झुकाइए
प्रदीप कुमार सिंह
कुशवाहा
१२-१२-२०१४
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