हिंदी दिवस
जो अनुभूतियां
कभी हम जीते थे
अब उन्हीं के
स्मृति कलश सजाकर
प्रतीक रूप में चुन चुनकर
नित दिवस मनाते हैं
परम्परा तो स्वस्थ है
भावनाओं के
इस रेगिस्तान में
इसी बहाने
मंद बयार का एहसास
ये दिवस दे जाते हैं।
जो अनुभूतियां
कभी हम जीते थे
अब उन्हीं के
स्मृति कलश सजाकर
प्रतीक रूप में चुन चुनकर
नित दिवस मनाते हैं
परम्परा तो स्वस्थ है
भावनाओं के
इस रेगिस्तान में
इसी बहाने
मंद बयार का एहसास
ये दिवस दे जाते हैं।
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हिंदी
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अंग्रेजी-उर्दू सौतन बनी
घर उजाड़ रही, ये बहना
भारत की बिंदी है हिन्दी
देवनागरी स्वर्णिम गहना
हिंदी के गलबहियां डाले
फल फूल रही कई जबानें
हिन्दी की जड़ खोद रहे
अपने ही जाने-अनजाने
तुष्टिकरण इतना न हो
अपना वैभव गौरव भूलें
शीश झुके माँ चरणों में
हम नभ को हाथों से छू लें
सुंदर सब भाषायें देश की
सबका ही सम्मान करें
करते जितना माँ से अपने
हिंदी से भी प्यार करें
देव नागरी अपनाकर हम
देश का मान बढ़ाएं
एक सूत्र में बंधकर हम
आओ अब हिंदी अपनायें
राज-भाषा, राष्ट्र-भाषा
हिंदी पर अभिमान करें
जन-जन की भाषा हो
ये राष्ट्र हित में व्यवहार करें
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
धर्म धर्म अधर्म
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धर्म अधर्म
देशकाल की धुरी पर
नर्तन करता हुआ
ज्ञानियों / अज्ञानियों
की गोद में
पल पल मचलता
रंग बदलता
कुछ न कुछ कहता है
युग हो कोई
नयी बात नहीं
परोक्ष / अपरोक्ष
दिल के किसी कोने में
रावण रहता है
विष वमन
घायल तन मन
चिंतन मनन
जन जन छलता है
न कर मन मलिन
न हो तू उदास
रख द्रढ़ विश्वास
अत्याचारों की
जब जब अति होती है
हरी भरी वसुंधरा
पापों से रोती है
होता कोई अवतार
अधर्म पर धर्म की
विजय होती है
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
8-10-2013
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