नीला रंग अम्बर पे धरा हरियाली छायी है
फीकी पड़ी वसंत बयार लगे होली आयी है
चहके कानन फूला उपवन चली पवन मतवाली है
पुलकित तन बहके मन आनन् पे छायी लाली है
फीकी पड़ी वसंत बयार .........
अमराई फूली सरसों फूली डार डार कोयलिया कूकी
चातक पपीहा विरही प्रियतमा पिया मिलन हिय हूकी
फीकी पड़ी वसंत बयार .........
पिया मिलन की आस लगाये निश दिन स्वप्न सजाये
जबसे चली मस्त फगुआ बयार प्रियतम की याद सताए
फीकी पड़ी वसंत बयार .........
आई गयी प्रिय, कितनी ऋतू बीतीं करती रही इंतजार
दर्पण धूमिल , नैना अश्रु पूरित तुम बिन अधूरा श्रृंगार
फीकी पड़ी वसंत बयार .........
आस जगी तन मन प्यास जगी नयन तके हैं द्वार
आना अबकी तो फिर न जाना किये हूँ सोरह श्रंगार
फीकी पड़ी वसंत बयार .........
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
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